तबादले थोक में, नीति नदारद, कब तक होंगे डिजायर बेस तबादले
RNE Network
राज्य में इस समय तबादलों की बयार तेज गति से चल रही है। लगभग सभी विभागों में अन्य काम तो ठप्प है, केवल तबादला सूचियां बनाने का काम जोर शोर से चल रहा है। सत्तारूढ़ दल के विधायक व मंत्री केवल तबादलों की माथापच्ची में ही लगे हुए हैं। मंत्रियों और विधायकों के निवास पर उमड़ रही भीड़ बता रही है कि तबादले थोक के भाव मे इस बार होंगे। क्योंकि राज बदलने के बाद पहली बार तबादलों पर से प्रतिबंध हटा है।
हां, शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा विभाग व तकनीकी शिक्षा विभाग के मंत्री जरूर राहत में है। इन विभागों में तबादलों पर से प्रतिबंध नहीं हटा है। शिक्षा विभाग यदि तबादले इस समय कर रहा होता तो जयपुर की होटलों में पांव रखने की जगह तक नहीं होती। पूरे राज्य से शिक्षक राजधानी पहुंचे हुए होते। शिक्षक वर्ग संख्यात्मक दृष्टि से सर्वाधिक है तो वहां तबादले भी अधिक ही संख्या में होते हैं। जिसमें तो तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले करने का साहस तो सरकारें वर्षों से नहीं जुटा पा रही है।
विधायकों का जयपुर में डेरा:
राज्य सरकार ने पहले केवल 10 जनवरी तक तबादलों पर से प्रतिबंध हटाया था। मगर मंत्रियों व विधायकों के दबाव में ये छूट 15 जनवरी तक देनी पड़ी। इस कारण राज के अधिकतर विधायकों ने इस समय जयपुर में ही डेरा डाला हुआ है, ताकि क्षेत्र के तबादले मंत्रियों से आसानी रहे। अपने क्षेत्र के लोगों को भी वे सहज में उपलब्ध हो, इस बात का भी ध्यान रख रहे हैं।
सारे विभागों के मंत्रियों की तरफ से एक बात स्पष्ट है कि अपने विधायक की डिजायर लाने पर ही तबादला होना संभव होगा। इस वजह से विधायक की डिजायर पाना बड़ी बात हो गई है। विधायक भी इस समय केवल डियाजर लिखने का ही अधिक काम कर रहे हैं। इसके लिए खास तौर से सहयोगी भी बिठा रखे हैं ताकि क्षेत्र का कोई व्यक्ति डिजायर न मिलने से नाराज न हो जाये।
तय है राज्यादेशों से तबादले:
जब सभी मंत्री विधायकों की डिजायर के आधार पर तबादले कर रहे हैं तो ये तो तय ही है कि तबादले राज्यादेश से होंगे। प्रार्थना पत्र के साथ डिजायर जरूरी जो है। कुछ नियम तबादलों को विभागों ने जरूर बनाये हैं, मगर कोई फूल प्रूफ नीति नहीं है। ये तो एकदम स्पष्ट बात है।
तबादला नीति आखिर कब:
हर सरकार जब बनती है तो वह तबादलों के लिए नीति बनाने की बात जरूर करती है मगर पूरे कार्यकाल में कभी नीति नहीं बनाती। अधिकारियों के दल दूसरे राज्यों का दौरा करते हैं। अध्ययन के बाद नीति का मसौदा बनाते हैं, मगर वो एप्रूव नहीं होता और राज बदल जाता है। नीति की बात हवा हो जाती है। दूसरी सरकार आती है तो फिर यही गीत गाया जाता है। राजस्थान क्यों आंध्रा व उड़ीसा की तर्ज पर तबादला नीति नहीं बना सकता, बना सकता है। मगर उसके लिए ईच्छाशक्ति होना जरूरी है। जिसका प्रदर्शन अब तक तो किसी सरकार ने नहीं किया है।
राज्यादेश ही तबादले का आधार बना हुआ है क्योंकि ये उनके लिए एक बड़ी सुविधा है। इस कारण बात आगे नहीं बढ़ रही। तबादलों में अपने लोगों को राहत देने भर का ध्येय भर नहीं रहता, कुछ को प्रताड़ित कर बाहर भी करना एक ध्येय रहता है। इसी कारण नीति के बजाय नियम व निर्देशों से तबादले का काम सभी चला रहे हैं, यही चाह रहे हैं।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।